Sharda Sinha sings Maithili, Bhojpuri and Magahi songs, and has received the Padma Shri award for her contribution to music.[2] Prayag Sangeet Samiti organised Basant Mahotsava at Prayag where Padma Shri Sharda Sinha presented numerous songs based on the theme of spring season,[3] where the advent of spring was narrated through folk songs.[3] She regularly performs during Durga Puja festivities.[4][5] She performed when the Prime Minister of Mauritius Navin Ramgoolam came to Bihar.[6][7] Sinha performed at Pragati Maidan in the Bihar Utsav, 2010, New Delhi
शारदा सिन्हा
(गायिका)
बिहार में छठ के पारंपरिक गीत हों या विवाह के मौके पर कानों में अक्सर सुनाई देने वाले गीत,इन गीतों का दूसरा नाम ही पद्मश्री शारदा सिन्हा कहा जाता है। शारदा कहती हैं कि बचपन में पटना में रहकर शिक्षा ले रही थी,स्कूल और कॉलेज के दिनों में गर्मी की छुट्टी होने पर अपने गांव हुलास जाती थी। वहां आम के अपने बगीचे या गाछी में दूसरी लड़कियों के साथ शौक से आम को अगोरने(रक्षा करने)जाती थी। इस दौरान रिश्तेदार लड़कियों के साथ लोक गीत गाना सीखा। हम बगीचे में दिन भर रहते और खूब लोक गीत गाती थी।कई बॉलीवुड फिल्मों में गा चुकीं हैं सॉन्ग्स...
-पर्व त्योहारों से लेकर दूसरे शुभ अवसरों पर इनके गाए गीत जहां एक ओर बिहार की लोक संस्कृति की सोंधी महक बिखेरते हैं वहीं यह गीत कानों में मिश्री घोलने का भी काम करते हैं।
-बिहार ही नहीं,बल्कि पूर्वी उत्तर प्रदेश,झारखंड समेत मॉरीशस तक में इनके लोकगीतों को खासा पसंद किया जाता है।
-अपने गायन से बिहार के लोकगीतों को इन्होंने जन-जन तक पहुंचाने का काम ही नहीं किया है बल्कि इसे संरक्षित भी किया है।
-शारदा सिन्हा के बारे में आमतौर पर लोग जानते हैं कि वह मैथिली,भोजपुरी आदि भाषाओं की एक ख्यातिप्राप्त लोक गायिका हैं।
-मैंने प्यार किया,हम आपके हैं कौन जैसी चर्चित हिंदी फिल्मों में अपनी आवाज दे चुकी हैं। इनके गाए भजन घर से लेकर मंदिरों तक में सुनने को मिल जाते हैं।
-लेकिन,बहुत कम लोगों को पता होगा कि वह कभी मणिपुरी नृत्य की एक अच्छी नृत्यांगना भी रह चुकी हैं। उन्होंने शास्त्रीय संगीत की भी उच्च शिक्षा प्रतिष्ठित गुरुओं से ली है।
-शारदा बताती हैं कि जन्म तब के सहरसा और अब के सुपौल जिले के हुलास गांव के एक समृद्ध परिवार में हुआ था। पिता शुकदेव ठाकुर शिक्षा विभाग में वरिष्ठ अधिकारी थे।
शारदा कहती हैं कि बचपन पटना में बीता
-बांकीपुर गर्ल्स हाईस्कूल की छात्रा रही बाद में मगध महिला कॉलेज से स्नातक किया। इसके बाद प्रयाग संगीत समिति,इलाहाबाद से संगीत में एमए किया।
-समस्तीपुर के शिक्षण महाविद्यालय से बीएड किया। पढ़ाई के दौरान संगीत साधना से भी जुड़ी रही। बचपन से ही नृत्य,गायन और मिमिकरी करती रहती थी,जिसने स्कूल-कॉलेज के दिनों में ही पहचान दिलाई।
-पर्व त्योहारों से लेकर दूसरे शुभ अवसरों पर इनके गाए गीत जहां एक ओर बिहार की लोक संस्कृति की सोंधी महक बिखेरते हैं वहीं यह गीत कानों में मिश्री घोलने का भी काम करते हैं।
-बिहार ही नहीं,बल्कि पूर्वी उत्तर प्रदेश,झारखंड समेत मॉरीशस तक में इनके लोकगीतों को खासा पसंद किया जाता है।
-अपने गायन से बिहार के लोकगीतों को इन्होंने जन-जन तक पहुंचाने का काम ही नहीं किया है बल्कि इसे संरक्षित भी किया है।
-शारदा सिन्हा के बारे में आमतौर पर लोग जानते हैं कि वह मैथिली,भोजपुरी आदि भाषाओं की एक ख्यातिप्राप्त लोक गायिका हैं।
-मैंने प्यार किया,हम आपके हैं कौन जैसी चर्चित हिंदी फिल्मों में अपनी आवाज दे चुकी हैं। इनके गाए भजन घर से लेकर मंदिरों तक में सुनने को मिल जाते हैं।
-लेकिन,बहुत कम लोगों को पता होगा कि वह कभी मणिपुरी नृत्य की एक अच्छी नृत्यांगना भी रह चुकी हैं। उन्होंने शास्त्रीय संगीत की भी उच्च शिक्षा प्रतिष्ठित गुरुओं से ली है।
-शारदा बताती हैं कि जन्म तब के सहरसा और अब के सुपौल जिले के हुलास गांव के एक समृद्ध परिवार में हुआ था। पिता शुकदेव ठाकुर शिक्षा विभाग में वरिष्ठ अधिकारी थे।
शारदा कहती हैं कि बचपन पटना में बीता
-बांकीपुर गर्ल्स हाईस्कूल की छात्रा रही बाद में मगध महिला कॉलेज से स्नातक किया। इसके बाद प्रयाग संगीत समिति,इलाहाबाद से संगीत में एमए किया।
-समस्तीपुर के शिक्षण महाविद्यालय से बीएड किया। पढ़ाई के दौरान संगीत साधना से भी जुड़ी रही। बचपन से ही नृत्य,गायन और मिमिकरी करती रहती थी,जिसने स्कूल-कॉलेज के दिनों में ही पहचान दिलाई।
तब हरि उप्पल सर ने मेरी आवाज सुन पूछा था कि रेडियो कहां बजा
-शारदा सिन्हा अपने छात्र जीवन से जुड़ा अनुभव सुनाते हुए कहती हैं कि एक बार भारतीय नृत्य कला मंदिर में जब मैं शिक्षा ले रही थी तब एक दिन ऐसे ही सहेलियों के साथ गीत गा रही थी।
-इसे सुन हरि उप्पल सर छात्राओं से पूछा कि यहां रेडियाे कहां बज रहा है। किसकी शरारत है कि यहां रेडियो लेकर आई है।
-सब ने कहा कि शारदा गा रही है,इसे सुन उन्होंने मुझे अपने कार्यालय में बुलाया और टेप रिकार्डर ऑन कर कहा कि अब गाओ।
-मैंने गाना शुरू किया जिसे बाद में उन्होंने सुनाया। सुन कर मुझे भी यकीन नहीं हो रहा था कि मैं इतना अच्छा गा सकती हूं। मैंने पहली बार अपना ही गाया गाना रिकार्डेड रूप में सुना था।
-इसे सुन हरि उप्पल सर छात्राओं से पूछा कि यहां रेडियाे कहां बज रहा है। किसकी शरारत है कि यहां रेडियो लेकर आई है।
-सब ने कहा कि शारदा गा रही है,इसे सुन उन्होंने मुझे अपने कार्यालय में बुलाया और टेप रिकार्डर ऑन कर कहा कि अब गाओ।
-मैंने गाना शुरू किया जिसे बाद में उन्होंने सुनाया। सुन कर मुझे भी यकीन नहीं हो रहा था कि मैं इतना अच्छा गा सकती हूं। मैंने पहली बार अपना ही गाया गाना रिकार्डेड रूप में सुना था।
परिवार का रहा हर कदम पर सपोर्ट
शारदा बताती है कि गायन की इस यात्रा में पिता के साथ ही परिवार के अन्य सदस्यों का भरपूर सहयोग मिला। शादी के बाद पति डॉ. ब्रज किशोर सिन्हा ने हर कदम पर साथ दिया। परिवार में बेटी वंदना, दामाद संजू कुमार, बेटा अंशुमन का भी सहयोग मिलता रहता है। बेटी वंदना खुद एक अच्छी गायिका हैं और उनकी विरासत को आगे बढ़ा रही हैं। अंशुमन ने उनकी गीतों और कामों का डॉक्युमेंटेशन किया है। अंशुमन ने ही उनको नई तकनीक से जोड़ा है। अब वह शारदा सिन्हा ऑफिशियल नाम से यू ट्यूब चैनल पर भी हैं जहां उनके गानों को सुना जा सकता है।
1991 में मिला पद्मश्री सम्मान
शारदा सिन्हा को इनके गायन के लिए राज्य और देश के कई प्रतिष्ठित सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है। 1991 इन्हें भारत सरकार ने पद्मश्री अवाॅर्ड से सम्मानित किया जा चुका है। इसके साथ ही इन्हें संगीत नाटक अकादमी अवाॅर्ड समेत दर्जनों अवाॅर्ड से सम्मानित किया जा चुका है।
बगीचे में अाम चुनते हुए सीखे लोकगीत
शारदा सिन्हा कहती हैं कि बचपन में पटना में रहकर शिक्षा ले रही थी, स्कूल और कॉलेज के दिनों में गर्मी की छुट्टी होने पर अपने गांव हुलास जाती थी। वहां आम के अपने बगीचे या गाछी में दूसरी लड़कियों के साथ शौक से आम को अगोरने(रक्षा करने) जाती थी। वह हम आम के टिकोले चुनती और खाती। इस दौरान रिश्तेदार लड़कियों के साथ लोक गीत गाना सीखा। हम बगीचे में दिन भर रहते और खूब लोक गीत गाती थी।
1988 में विदेश में पहला शो
शारदा सिन्हा ने अपने गायन से देश की सीमाओं से पार जाकर मॉरीशस में भी खूब लोकप्रियता पाई है। 1988 में उपराष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा के साथ मॉरीशस के 20वें स्वतंत्रता दिवस पर जाने वाले प्रतिनिधिमंडल में यह भी शामिल थीं। वहां इनका भव्य स्वागत किया गया, इनके गायन को पूरे मॉरीशस में सराहा गया। इस यात्रा को याद करते हुए वह बताती हैं कि हम कलाकार होटल जाने के लिए बैठे तब मेरा गाया गीत गाड़ी में बजने लगा, इसे सुन काफी चौंकी, पता किया तो पता चला कि सभी कलाकारों की गाड़ी में मेरा गाया गीत बज रहा है। इसे मॉरीशस ब्राडकास्टिंग कॉरपोरेशन की ओर से चलाया जा रहा था। इसे सुन काफी खुशी मिली।
शारदा बताती है कि गायन की इस यात्रा में पिता के साथ ही परिवार के अन्य सदस्यों का भरपूर सहयोग मिला। शादी के बाद पति डॉ. ब्रज किशोर सिन्हा ने हर कदम पर साथ दिया। परिवार में बेटी वंदना, दामाद संजू कुमार, बेटा अंशुमन का भी सहयोग मिलता रहता है। बेटी वंदना खुद एक अच्छी गायिका हैं और उनकी विरासत को आगे बढ़ा रही हैं। अंशुमन ने उनकी गीतों और कामों का डॉक्युमेंटेशन किया है। अंशुमन ने ही उनको नई तकनीक से जोड़ा है। अब वह शारदा सिन्हा ऑफिशियल नाम से यू ट्यूब चैनल पर भी हैं जहां उनके गानों को सुना जा सकता है।
1991 में मिला पद्मश्री सम्मान
शारदा सिन्हा को इनके गायन के लिए राज्य और देश के कई प्रतिष्ठित सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है। 1991 इन्हें भारत सरकार ने पद्मश्री अवाॅर्ड से सम्मानित किया जा चुका है। इसके साथ ही इन्हें संगीत नाटक अकादमी अवाॅर्ड समेत दर्जनों अवाॅर्ड से सम्मानित किया जा चुका है।
बगीचे में अाम चुनते हुए सीखे लोकगीत
शारदा सिन्हा कहती हैं कि बचपन में पटना में रहकर शिक्षा ले रही थी, स्कूल और कॉलेज के दिनों में गर्मी की छुट्टी होने पर अपने गांव हुलास जाती थी। वहां आम के अपने बगीचे या गाछी में दूसरी लड़कियों के साथ शौक से आम को अगोरने(रक्षा करने) जाती थी। वह हम आम के टिकोले चुनती और खाती। इस दौरान रिश्तेदार लड़कियों के साथ लोक गीत गाना सीखा। हम बगीचे में दिन भर रहते और खूब लोक गीत गाती थी।
1988 में विदेश में पहला शो
शारदा सिन्हा ने अपने गायन से देश की सीमाओं से पार जाकर मॉरीशस में भी खूब लोकप्रियता पाई है। 1988 में उपराष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा के साथ मॉरीशस के 20वें स्वतंत्रता दिवस पर जाने वाले प्रतिनिधिमंडल में यह भी शामिल थीं। वहां इनका भव्य स्वागत किया गया, इनके गायन को पूरे मॉरीशस में सराहा गया। इस यात्रा को याद करते हुए वह बताती हैं कि हम कलाकार होटल जाने के लिए बैठे तब मेरा गाया गीत गाड़ी में बजने लगा, इसे सुन काफी चौंकी, पता किया तो पता चला कि सभी कलाकारों की गाड़ी में मेरा गाया गीत बज रहा है। इसे मॉरीशस ब्राडकास्टिंग कॉरपोरेशन की ओर से चलाया जा रहा था। इसे सुन काफी खुशी मिली।
तब के राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधा कृष्णन ने इनके नृत्य की काफी सराहना की थी
शारदा सिन्हा को बचपन से ही नृत्य और गायन से कितना लगाव था। भारतीय नृत्य कला मंदिर में नृत्य की परीक्षा के समय इनका दाहिना हाथ फ्रैक्चर हो गया लेकिन इसके बावजूद इन्होंने मणिपुरी नृत्य किया और अपनी कक्षा में प्रथम आईं। भारतीय नृत्य कला मंदिर के ऑडिटोरियम का उद्घाटन करने के लिए तब के राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधा कृष्णन आए, उस कार्यक्रम में इन्होंने मणिपुरी नृत्य पेश किया जिसे उन्होंने काफी सराहा। याद कर वह कहती हैं कि उनके गांव हुलास में दुर्गापूजा में नाटक होता था उसे देखने के लिए भी लड़कियां नहीं जाती थीं। पिता की दूरदर्शी सोच ने उन्हें घर से बाहर निकाला, घर पर गुरु को बुलाकर संगीत की शिक्षा दिलाई और बाद में भारतीय नृत्य कला मंदिर में नाम लिखवा दिया। उसी गांव में 1964 में पहली बार मंच पर भी गाकर रूढ़िवादी सोच को तोड़ा। बाद में गांव वाले परिवार वालों से पूछते कि शारदा अब कब गांव आएगी और गाएगी। वह कहती हैं कि पिता काफी प्रगतिशील थे इसलिए उन्होंने सपोर्ट किया लेकिन समाज तो रूढ़िवादी ही था इसलिए मायके के लोगों को बुरा लगता कि मैं नृत्य और गायन सीखती हूं।
लोक गीत सहज है इसलिए दिल के करीब
लोक गीत सहज है इसलिए दिल के करीब
शारदा सिन्हा देशभर में अपने लोक गीतों के लिए जानी जाती हैं। लोक गीतों को इन्होंने एक नई ऊंचाई दी है। इसके बारे में वह कहती हैं, लोक गीतों में सहजता होती है और मैं भी स्वभाव से सहज हूं। लोक गीतों को आसानी से आम लोग समझ सकते हैं, इनके अंदर छिपे संदेशों को ग्रहण कर सकते हैं। इसलिए लोक गीतों को गाना ज्यादा पसंद करती हूं। वह कहती हैं कि आज भी आधुनिकता के दौर में हम कहीं न कहीं अपनी लोक संस्कृति से जुड़ेे हैं। अपने लोक गीतों से उन्होंने हमेशा समाज को सही दिशा देने की कोशिश की है।
गायन में शालीनता व मिट्टी की महक रहे यह कोशिश रही
वह कहती हैं कि उनके जीवन का हमेशा से यह उसूल रहा है कि वह अच्छे गाने गाएं, जो भी गाया उसमें हमेशा गुणवत्ता का ख्याल रखा है। उनका मानना है कि अच्छा गाने वाले बहुत कम गाकर भी लोगों तक पहुंच सकते हैं और लोकप्रियता पा सकते हैं। अगर किसी गाने के बोल अश्लील या अच्छे नहीं हैं तो उसे वह नहीं गातीं। गायन में शालीनता और मिट्टी की सोंधी महक रहे यह कोशिश वह हमेशा करती हैं। यही कारण है कि बॉलीवुड से आए गायन के कई प्रस्ताव को भी नकार चुकी हैं।
गायन में शालीनता व मिट्टी की महक रहे यह कोशिश रही
वह कहती हैं कि उनके जीवन का हमेशा से यह उसूल रहा है कि वह अच्छे गाने गाएं, जो भी गाया उसमें हमेशा गुणवत्ता का ख्याल रखा है। उनका मानना है कि अच्छा गाने वाले बहुत कम गाकर भी लोगों तक पहुंच सकते हैं और लोकप्रियता पा सकते हैं। अगर किसी गाने के बोल अश्लील या अच्छे नहीं हैं तो उसे वह नहीं गातीं। गायन में शालीनता और मिट्टी की सोंधी महक रहे यह कोशिश वह हमेशा करती हैं। यही कारण है कि बॉलीवुड से आए गायन के कई प्रस्ताव को भी नकार चुकी हैं।
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