Anoyara Khatun was all but 5 when she lost her father. She came from a family of limited means in Sandeshkali Block of rural North 24 Parganas district (West Bengal). When she turned 12, circumstances in the family compelled her to work as a domestic help in a household. Much to her disliking, Anoyara worked in a household for about six months and then reached back to her village. Once there, she saw that the situation was terrible for children. Child marriages were rampant and a large number of children were being pushed into child labour and many were being trafficked to cities. Anoyara felt perturbed and wanted to do something about it but there were no means at her disposal.पश्चिम बंगाल के एक छोटे से गांव में रहने वाली अनोयरा ने होश संभालते ही मुश्किलों का सामना किया। पांच साल की थीं, जब पिता चल बसे। यह बात 2002 की है। इसके बाद पांच बच्चों को पालने की जिम्मेदारी मां पर आ गई। मां पड़ोस के एक स्कूल में खाना बनाने लगीं। लेकिन उनकी कमाई घर-खर्च के लिए काफी नहीं थी। पांच बच्चों को पढ़ाना और उनके खाने-पीने का इंतजाम करना उनके बस के बाहर था। बड़ी दो बेटियां 13 और 14 साल की हो चुकी थीं। गांव की परंपरा के मुताबिक, उनकी शादी करनी थी। अनोयरा बताती हैं, हमारे गांव में बाल विवाह आम बात है।
पश्चिम बंगाल के एक छोटे से गांव में रहने वाली अनोयरा ने होश संभालते ही मुश्किलों का सामना किया। पांच साल की थीं, जब पिता चल बसे। यह बात 2002 की है। इसके बाद पांच बच्चों को पालने की जिम्मेदारी मां पर आ गई।
मां पड़ोस के एक स्कूल में खाना बनाने लगीं। लेकिन उनकी कमाई घर-खर्च के लिए काफी नहीं थी। पांच बच्चों को पढ़ाना और उनके खाने-पीने का इंतजाम करना उनके बस के बाहर था। बड़ी दो बेटियां 13 और 14 साल की हो चुकी थीं। गांव की परंपरा के मुताबिक, उनकी शादी करनी थी। अनोयरा बताती हैं, हमारे गांव में बाल विवाह आम बात है।
लोग कम उम्र में बेटियों की शादी कराके अपना बोझ हल्का कर लेते हैं। काश, मैं अपनी बहनों को बाल विवाह से बचा पाती। मां ने किसी तरह जमा पूंजी से दोनों बेटियों को बिना यह देखे ब्याह दिया कि ससुराल में उनका जीवन कैसा होगा?
परिवार की आर्थिक हालत बहुत खराब थी। अनोयरा तब 12 साल की थीं। वह कक्षा चार में पढ़ रही थीं। पड़ोस के एक व्यक्ति ने लालच दिया कि शहर में नौकरी मिल जाएगी। अच्छे पैसे मिलेंगे और घर के हालात सुधर जाएंगे। अनोयरा बताती हैं, मुझे स्कूल छोड़ना पड़ा। बहुत दुखी थी मैं। पर क्या करती? सोचा, शहर में काम करके परिवार की मदद कर पाऊंगी।
अनोयरा दिल्ली आ गईं। एक घर में चौका-बर्तन व खाना बनाने का काम मिला। तस्कर उन्हें दिल्ली में छोड़कर गायब हो गया। वह बंधुआ मजदूर बन चुकी थीं। घर वालों से संपर्क टूट गया। मां और भाई-बहनों की बहुत याद आती थी उन्हें। किसी तरह छह महीने बीते। वह अपने गांव लौटना चाहती थीं। मगर पास में किराये के पैसे नहीं थे।
आखिर एक दिन हिम्मत जुटाई। भागकर स्टेशन पहुंची और कोलकाता वाली ट्रेन में बैठ गई। पूरा सफर इस डर के साथ बीता कि कहीं कोई देख न ले।गांव आकर पता चला कि नौकरी के नाम पर ठगी जाने वाली वह अकेली लड़की नहीं हैं। गांव के तमाम बच्चे इसी तरह तस्करों के जाल में फंस चुके थे। ज्यादातर मामलों में देखा गया कि शहर में नौकरी के नाम पर भेजे गए बच्चे कभी वापस गांव नहीं लौट पाए।
कई गरीब परिवारों की बेटियों को शादी के नाम पर बेच दिया गया था। वह समझ चुकी थीं कि गांव वालों के साथ कुछ गलत हो रहा है। उन्होंने तय किया कि वह गांव में अब ऐसा कुछ नहीं होने देंगी। उन्होंने गांव वालों को बताया कि दिल्ली में उनके साथ क्या हुआ और उनसे अपील की कि वे अपने बच्चों को बाहर न भेजें| इस बीच अनोयरा सेव द चिल्ड्रन नाम के गैर-सरकारी संगठन के संपर्क में आईं। संगठन की मदद से वह गांव वालों को बच्चों की तस्करी और बाल विवाह के बारे में जागरूक करने लगीं।
अनोयरा कहती हैं, जब आप खुद दर्द सहते हैं, तो आपके अंदर एक तड़प पैदा होती है। मेरी मजबूरी ही मेरी ताकत बन गई। इसी के सहारे मैंने लड़ाई शुरू की। उन्होंने गांव के बच्चों की एक टोली बनाई। इसकी मदद से वह उन लोगों पर नजर रखने लगीं, जो शादी के नाम पर कम उम्र की लड़कियों का सौदा करते थे।
शुरुआत में गांव वालों को यह अच्छा नहीं लगा। वे भड़क जाते थे, यह लड़की क्यों नेता बन रही है? इससे क्या मतलब? यह कौन होती है हमें रोकने वाली? यहां तक कि उनके अपने घर वाले नहीं चाहते थे कि वह गांव में अभियान चलाएं। अनोयरा बताती हैं, मां और भाई नहीं चाहते थे कि मैं यह सब करूं। मगर मैंने किसी की नहीं सुनी।एक दिन रात में उन्हें खबर मिली कि तस्कर गांव की एक लड़की को पकड़ ले जाने वाले हैं।
वह मां को बिना बताए रात में चुपचाप घर से निकलीं। तस्कर का पीछा करने के लिए गांव की नहर पार करनी पड़ी। उन्होंने तस्कर को ललकारा, तो वह लड़की को छोड़कर भाग गया। अब गांव वालों का नजरिया बदलने लगा। देखते-देखते अनोयरा गांव के बच्चों की रोल मॉडल बन गईं। सारे बच्चे उन्हें दीदी बुलाने लगे। आस-पास के गांवों के लोग भी जुड़ते गए।
हालांकि सफर आसान नहीं रहा। उन्होंने कई बाल विवाह रुकवाए। कई बच्चों को तस्करों के जाल में फंसने से बचाया। कई बार गांव के बड़े-बूढ़ों का विरोध भी सहना पड़ा। कई लोगों को लगता था कि यह लड़की उनके व्यक्तिगत जीवन में दखल दे रही है।
अनोयरा बताती हैं, हमने कभी बड़ों का अपमान नहीं किया। बस उनसे विनती की कि वे अपनी बेटियों का जीवन खराब न करें। उन्हें पढ़ने दें। उनका संघर्ष जारी रहा। उन्होंने दोबारा स्कूल जाना शुरू किया। स्कूल से घर लौटने के बाद बच्चों की टोली के संग शाम को गांव वालों को जागरूक करने निकलती थीं। स्कूल के शिक्षकों ने भी उनका साथ दिया। वह कॉलेज जाने वाली गांव की पहली लड़की हैं।
आस-पास के इलाकों में उनकी चर्चा होने लगी। कई बार बच्चों को बचाने के लिए पुलिस की मदद भी लेनी पड़ी। आज 40 गांवों में उनका नेटवर्क काम करता है। साल 2012 में उन्हें इंटरनेशनल चिल्ड्रन पीस अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। इस महिला दिवस पर राष्ट्रपति ने उन्हें नारी शक्ति अवॉर्ड से सम्मानित किया। अनोयरा कहती हैं, मैं ऐसी दुनिया देखना चाहती हूं, जहां हर बच्चे को खुशियां नसीब हो। हर बच्च स्कूल जाए।
साभार -हिंदुस्तान अख़बार
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